
मेरी क़लम की सियाही काग़ज़ को मंज़ूर नहीं
मेरे ख़ुदा की खुदाई बंदे को मंज़ूर नहीं
मेरी रगों का धुआँ मेरे जिगर को मंज़ूर नहीं
मेरे होने का ग़ुमा मेरे शहर को मंज़ूर नहीं
अमावस की रात चाँद को मंज़ूर नहीं
मेरे दिल की बात मेरे ज़हन को मंज़ूर नहीं
आग को राख़ बन कर बुझ जाना मंज़ूर नहीं
मुझे खाक़ बन कर चले जाना मंज़ूर नहीं