Searching

मेले में ख़ामोशीऔर अकेले में शोरमुझ में ख़ुदाऔर ख़ुदा में कोई औरक्या ढूँढते होकहाँ उलझी है डोरक़ाबा खड़ा हैतेरे सजदों की ओर

Rate this:

मंज़ूरियां

मेरी क़लम की सियाही काग़ज़ को मंज़ूर नहीं मेरे ख़ुदा की खुदाई बंदे को मंज़ूर नहीं मेरी रगों का धुआँ मेरे जिगर को मंज़ूर नहीं मेरे होने का ग़ुमा मेरे शहर को मंज़ूर नहीं अमावस की रात चाँद को मंज़ूर नहीं मेरे दिल की बात मेरे ज़हन को मंज़ूर नहीं आग को राख़ बन करContinue reading “मंज़ूरियां”

Rate this: